सैन्य प्रशिक्षणों व नियमित उड़ानों के दौरान कई बार लड़ाकू विमान दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं। ऐसे में कई बार तो पायलट दुर्घटना के दौरान विमानों से बाहर निकलने में कामयाब हो जाते हैं और कई बार वे भी हादसे का शिकार हो जाते है। लड़ाकू विमानों में ऐसा क्या सिस्टम होता है, जिससे क्रेश के वक्त पायलट बाहर निकलने में सफल हो जाते हैं। कई बार क्रेश के बाद प्लेन में आग भी लग जाती है। हाल ही ग्वालियर एयरबेस पर 17 मार्च को फाइटर प्लेन मिग-21 बायसन दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस हादसे में पायलट की मौत हो गई। इस प्लेन क्रेश में पायलट बाहर आने में कामयाब नहीं हो सके।
रॉकेट पावर सिस्टम का सारा खेल
लड़ाकू विमान क्रेश के समय प्लेन से बाहर निकलने में सबसे अधिक मदद रॉकेट पावर सिस्टम करता है। यह पावर सिस्टम पायलट की सीट के नीचे होता है, जिसे रॉकेट पावर सिस्टम कहा जाता है। इसको पायलट की ओर से एक्टिवेट किया जाता है। क्रेश के समय यह 30 मीटर ऊपर तक पायलट को पुश करता है।
इस दौरान फाइटर प्लेन का एक छोटा हिस्सा खुल जाता है और पायलट नीचे गिरना शुरू हो जाता है। इस दौरान पायलट लगभग 3000 हजार मीटर की ऊंचाई पर होता है। अधिकांश फाइटर जेट विमान जमीन के ऊपर 3,000 से 6,000 मीटर के बीच होते हैं। इस उंचाई पर ऑक्सीजन की समस्या अधिक होती है। इसलिए सीट से जुड़ा एक छोटा ऑक्सीजन सिलेंडर भी होता है।। पायलट इसके बाद पैराशूट के सहारे नीचे आता है।
आखिर हर बार बाहर क्यों नहीं आ पाते पायलट
फाइटर प्लेन में यह सिस्टम है तो हर बार आखिर पायलट बाहर क्यों नहीं निकल पाते हैं। क्रेश के समय यदि फाइटर प्लेन की यह सीट डैमेज हो जाती है तो पायलट के सामने खतरा कहीं अधिक हो जाता है। और ऐसे मौकों पर ही पायलट की जान चली जाती है।
बाहर आने के बाद भी है चोटिल होने का खतरा
फाइटर प्लेन जब दुर्घटनाग्रस्त होता है और पायलट बाहर निकल आने में कामयाब होते हैं। उसके बाद भी उनके सामने ढेरों चुनौतियां होती हैं। ऐसे समय पायलट के रीढ़ की हड्डी में चोट लगने का खतरा सबसे अधिक होता है। इसे ठीक होने में 12 हफ्ते तक का समय लगता है। पायलट के हार्ड लैंडिंग में बहुत अधिक चोट लग सकती है, इस स्थिति में पायलट खड़े होने की स्थिति में नहीं रह पाता। इस तरह की चोटों में सर्जरी की आवश्यकता होती है।