आखर का डिजिटल लाइव कार्यक्रम आयोजित
जयपुर। गीत लेखन में भाव की भूमिका सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। मन में उस समय किस तरह के भाव आते हैं उसी से लेखन तय होता है। यह विचार शकुंतला सरूपरिया ने रविवार को आखर कार्यक्रम में व्यक्त किए। प्रभा खेतान फाउंडेशन की ओर से ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन के सहयोग से रविवार को आखर राजस्थान के फेसबुक पेज पर यह आयोजन किया गया। राजस्थानी साहित्य, कला और संस्कृति से परिचय करवाने के लिए आखर कार्यक्रम में शकुंतला सरूपरिया से अभिलाषा पारीक ने साहित्य के विभिन्न पक्षों विशेषकर गीत लेखन पर बातचीत की। इसमें साहित्यकार सरूपरिया ने बताया कि घरेलू कामकाज के बीच गीत लेखन के लिए टेप रिकॉर्डर का उपयोग किया। इसमें राजस्थानी नवरात्रि के गीत और राजस्थानी गरबा के गीत भी लिखे। गीत लेखन के कारण ही राजस्थानी लिखने के लिए प्रोत्साहित हुई। इसके साथ ही नारी विमर्श और डॉ अंबेडकर पर एक कमेंट्री भी रची। कार्यक्रम के समापन पर ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन के प्रमोद शर्मा ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए होलिका दहन के साथ ही कोरोना महामारी की समाप्ति की प्रार्थना की।
गौरतलब है कि आखर में प्रतिष्ठित राजस्थानी साहित्यकारों डॉ. आईदान सिंह भाटी, डॉ. अरविंद सिंह आशिया, रामस्वरूप किसान, अंबिका दत्त, मोहन आलोक, कमला कमलेश, भंवरसिंह सामौर, डॉ. गजादान चारण, ठाकुर नाहर सिंह जसोल आदि के साथ साहित्यिक चर्चा की जा चुकी है।
मनोभाव की भूमिका महत्वपूर्ण है गीत लेखन में
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