बिना तेल और बाती के सैकड़ों वर्षों से जल रही लौ

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विज्ञान के इस युग में चमत्कारों पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है, लेकिन कुछ ऐसे चमत्कार आज भी आंखों से देखे जा सकते हैं, जिन पर सहसा विश्वास नहीं किया जा सकता। ऐसा ही चमत्कारिक स्थान है हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा गांव में ज्वाला देवी का मंदिर। कहा जाता है कि जब सती माता खुद को अग्नि को समर्पित कर रही थीं, तब उनकी जीभ इस जगह गिरी थी। इसे 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ माना जाता है। इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां बिना तेल और बाती के सालों से एक लौ जल रही है, जो आज तक नहीं बुझी है।

पांडवों ने खोजा था यह मंदिर

ज्वाला देवी मंदिर, कांगडा घाटी से 30 किमी दक्षिण में हिमाचल प्रदेश में स्थित है। ज्वाला देवी मंदिर को जोत वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है। ज्वाला देवी मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवों को जाता है। इस मंदिर में माता के दर्शन ज्योति रूप में होते है। इस मंदिर से कुछ दूरी पर बाबा गोरखनाथ का मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण राजा भूमि चंद ने करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का निर्माण कार्य पूरा कराया। मंदिर के अंदर माता की नौ ज्योतियां है जिन्हें, महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है।

लौ को बुझाने के लिए अकबर ने बनवा दी थी नहर

जब 1542 से 1605 के मध्य अकबर दिल्ली का राजा था, उस दौरान की देवी को लेकर एक कथा भी प्रचलित है, जिसके अनुसार ध्यानु माता जोतावाली का परम भक्त था। एक बार देवी के दर्शन के लिए गांववासियों के साथ ज्वालाजी के लिए निकला। जब उसका काफिला दिल्ली से गुजरा तो मुगल बादशाह अकबर के सिपाहियों ने उसे रोक लिया और दरबार में पेश किया। अकबर ने पूछा कि वह कहां जा रहा है तो ध्यानु ने कहा वह जोतावाली के।
अकबर ने ध्यानु के घोड़े का सिर कटवा दिया और कहा कि अगर तेरी मां में शक्ति है तो घोड़े के सिर को जोडक़र उसे जीवित कर दें। यह सुन ध्यानु देवी की स्तुति करने लगा और अपना सिर काट कर माता को भेंट कर दिया। माता की शक्ति से घोड़े का सिर जुड़ गया। इस पर अकबर ने देवी के मंदिर में सोने का छत्र भी चढ़ाया, लेकिन उसके मन में घमंड होने से छत्र देवी के चढ़ाने से पहले ही गिर गया और वह किसी अजीब धातु का हो गया। आज तक यह पता नहीं चल पाया कि छत्र किस धातु का है। यह छत्र आज भी मंदिर में मौजूद है।
मंदिर में प्रवेश के साथ ही बायीं ओर अकबर नहर है। इस नहर को अकबर ने मंदिर में प्रज्जवलित ज्योतियों को बुझाने के लिए बनवाया था। उसके आगे मंदिर का गर्भ द्वार है, जिसमें माता ज्योति के रूप में विराजमान है।

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