
स्वास्थ्य के लिए हितकारी है ऋतु अनुसार दिनचर्या
जयपुर। हमारे ऋषि मुनियों ने व्यक्ति को निरोगी रहने को बड़ी उपलब्धि माना है। इसके लिए अनुशासित जीवन चर्या पर भी जोर दिया है ताकि व्यक्ति बीमार नहीं हो। इसके लिए आयुर्वेद में प्रत्येक व्यक्ति को मौसम के अनुसार जीवन जीने पर जोर दिया गया है। किस मौसम में क्या खान पान रखना चाहिए यह भी बताया गया है। इससे व्यक्ति एक तो बदलते मौसम के अनुरूप अपने को बना पाता है और साथ मौसम अनुकूल खान पान से वायरल और अन्य मौसमी बीमारियों से बचा रहता है।
नहीं करना चाहिए भारी भोजन
पौराणिक मान्यतानुसार सृष्टि का प्रथम दिवस चैत्र मास की प्रथम तिथि प्रतिपदा को माना गया है तथा इस मास की पूर्णिमा को चित्रा नक्षत्र होने से इस मास का नाम चैत्र मास माना गया है। इसी प्रकार हिंदू वर्ष का शुभारंभ भी चैत्र प्रतिपदा से ही माना गया। इसी प्रकार हिंदू वर्ष का शुभारंभ भी चैत्र प्रतिपदा से ही माना गया। ज्योतिषीय गणना व परंपरा का प्रारंभ भी इसी मास से होने के कारण इस महीने का मानव जीवन में विशिष्ट स्थान है।
अजमेर जिले में किशनगढ़ के वरिष्ठ वैद्य गोविंद नारायण शर्मा ने बताया कि इस समय सूर्य उत्तरायण होने से प्रबल व आग्नेय होता अर्थात इस समय वातावरण में गर्मी का समावेश होने लगता है। मौसम व वायु में रूक्षता बढ़ जाती है। मनुष्य थकान एवं कमजोरी महसूस करने लगता है। इसी कमजोरी के कारण मानव अनेक प्रकार के रोगों से ग्रसित हो सकता है। इस ऋतु में भारी भोजन, अम्ल पदार्थ, अत्यधिक चिकने पदार्थ और अत्यधिक मिठाई का सेवन नहीं करना चाहिए। नया अन्न जो अभी पैदा हुआ हो, दही, उड़द की दाल या उड़द से बने पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए। आलू, प्याज, गन्ना, नया गुड़ का सेवन नहीं करना चाहिए। दिन में सोना, अत्यधिक व्यायाम और अत्यधिक शीतल जल का सेवन नहीं करना चाहिए।
हल्का व्यायाम है जरुरी
इस मौसम में हल्का व्यायाम अवश्य करना चाहिए। स्नान और आहार के बाद हल्का गुनगुना पानी पीना चाहिए। आहार में जौ, गेहूं (पुराने) का सेवन करना चाहिए। मूंग, मसूर, अरहर, चना, मूली, गाजर, बथुआ, चौलाई, परवल, सरसो, मेथी, पालक, धनिया, अदरक आदि का भी सेवन हितकारी है। नीम की नवीन कौंपल और काली मिर्च का सेवन निश्चित समय के लिए चिकित्सकीय देखरेख में आवश्यकतानुसार किया जा सकता है। शरीर पर चंदन, अगर और हल्दी का शीतल जल में लेप किया जाना स्वास्थ्य के लिए उत्त्तम माना गया है।
वैद्य शर्मा ने बताया कि इस रोग में दमा, खांसी, बदन दर्द, बुखार, भोजन में अरूचि, जी मिचलाना, शरीर में भारीपन, भूख न लगना, अफरा, पेट में दर्द आदि बीमारियों के होने का खतरा बना रहता है। इसलिए मौसम के अनुकूल आहार विहार अपनाना चाहिए।