हर मौसम में मिलने वाला फल केला देश में अधिकतर लोगों की पहली पसंद है। इसे हर उम्र के लोग बड़े चाव से खाते हैं। हम कहीं जा रहे हों और भूख सताए तो सबसे पहले केला ही याद आता है। इस एक कारण इसकी कीमत भी है, जिससे हर वर्ग का व्यक्ति इसे आसानी से खरीद सकता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि अब बाजार में आने वाले केले कार्बाइड युक्त पानी में भिगोकर पकाए जा रहे हैं। कई रिसर्च में बताया गया है कार्बाइड कैंसर कारक व पेट के विभिन्न विकार भी उत्पन्न करता है। ऐसे में हम कार्बाइड से पकाए हुए केले खाकर अनजाने में कैंसर को दावत दे रहे हैं, जो हमें मौत के मुंह तक ले जा सकता है।
हरा डंठल कार्बाइड की पहचान
केले को प्राकृतिक तरीके से पकाया गया है तो उसका डंठल काला पड़ जाता है और केले का रंग गर्द पीला होता है और छिलके में कई जगह काले दाग भी पड़ जाते हैं। वहीं केले को कार्बाइड से पकाया गया है तो उसका डंठल हरा होगा और केले का रंग लेमन यलो होगा। ऐसे पकाए गए केले के छिलके पर दाग-धब्बे नहीं होते हैं।
बीमारियों की खान है कार्बाइड
यदि कार्बाइड को पानी में मिलाया जाता है तो उसमें से ऊष्मा निकलती है और एसीटिलीन गैस का निर्माण होता है। जब किसी केले के गुच्छे को ऐसे केमिकल युक्त पानी में डुबोया जाता है तब यह ऊष्मा केलों में पहुंचती और केले पक जाते हैं। केलों में पहुंची यह अतिरिक्त ऊष्मा हमारे पेट तक पहुंचती है, जिससे हमारे शरीर में कई विकार उत्पन्न हो सकते हैं। इससे पाचन तंत्र में खराबी आने के साथ आंखों में जलन, छाती में जकडऩ, जी मिचलाना, अल्सर व ट्यूमर भी बन सकता है, जिससे कैंसर तक हो सकता है।
हमें कार्बाइड वाले केले के उपयोग से बचना चाहिए
ऐसे में हमें कार्बाइड से पकाए गए केलों के उपयोग से बचना चाहिए। पहले केले बर्फ से पकाए जाते थे, लेकिन उसमें समय भी अधिक लगता है और बर्फ व्यापारियों के लिए महंगा सौदा साबित होता है। कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाने की चाहत में व्यापारी लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने में भी नहीं चूक रहेे हैं। इसलिए सेहत को दुरुस्त रखने के लिए हमें जागरूक होकर ऐसे केलों को खरीदने से बचना चाहिए।